भारतीय सनातन धर्म में भगवान शिव की पूजा को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। सावन का महीना भगवान शिव का प्रिय मास माना जाता है। इस मास में भक्तगण उपवास, व्रत, पूजा-पाठ और विशेष रूप से रुद्राभिषेक के माध्यम से भगवान शिव को प्रसन्न करते हैं। रुद्राभिषेक का अर्थ होता है भगवान शिव का विशेष पूजन जिसमें विभिन्न पवित्र वस्तुओं द्वारा शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है। इस लेख में हम सावन में रुद्राभिषेक का महत्व, विधि, लाभ और इससे जुड़ी पौराणिक कथाओं का विस्तारपूर्वक वर्णन करेंगे।
रुद्राभिषेक का शाब्दिक अर्थ

‘रुद्र’ का अर्थ है भगवान शिव का उग्र स्वरूप और ‘अभिषेक’ का अर्थ है स्नान कराना या पवित्र जल या अन्य सामग्री से स्नान कराकर पूजा करना। अर्थात, रुद्राभिषेक का अर्थ हुआ भगवान शिव के रुद्र रूप की विधिपूर्वक जल, दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल आदि से अभिषेक कर उन्हें प्रसन्न करना।

सावन में रुद्राभिषेक का महत्व
- शिव के प्रिय माह में रुद्राभिषेक का विशेष प्रभाव
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सावन का पूरा महीना शिव जी को अत्यंत प्रिय है। इस मास में रुद्राभिषेक करने से भक्तों के सभी पाप नष्ट होते हैं और मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। रुद्राभिषेक करने से शरीर, मन और आत्मा को शुद्धता मिलती है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
- ग्रह दोष और शारीरिक पीड़ा से मुक्ति
ज्योतिष शास्त्र में कहा गया है कि रुद्राभिषेक से राहु, केतु, शनि और अन्य ग्रहों के दोष शांत होते हैं। कुंडली में ग्रह बाधा होने पर सावन के महीने में रुद्राभिषेक कराना विशेष फलदायी माना गया है। इससे मानसिक तनाव, आर्थिक तंगी और पारिवारिक कलह से मुक्ति मिलती है।
- आध्यात्मिक उन्नति का माध्यम
रुद्राभिषेक केवल सांसारिक सुखों की प्राप्ति का साधन नहीं बल्कि आत्मा के उत्थान का भी एक श्रेष्ठ माध्यम है। सावन में किया गया रुद्राभिषेक साधक को ईश्वर के निकट ले जाता है और उसे परमशांति की अनुभूति होती है।

सावन में रुद्राभिषेक की विधि
रुद्राभिषेक करने से पहले आवश्यक सामग्री –
शुद्ध जल या गंगाजल
गाय का दूध
दही
घी
शहद
शक्कर
बेलपत्र
धतूरा, आक का फूल
चंदन, रोली
धूप, दीपक
ऋतु फल
सफेद फूल
पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और शक्कर का मिश्रण)
मंत्र उच्चारण के लिए रुद्राक्ष माला या जाप माला
रुद्राभिषेक की संपूर्ण प्रक्रिया
- प्रातः स्नान के पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- मंदिर या घर के पूजास्थल में शिवलिंग स्थापित करें।
- दीपक जलाकर भगवान गणेश का पूजन करें।
- पंचामृत से भगवान शिव का अभिषेक करें।
- इसके पश्चात शुद्ध जल से स्नान कराएं।
- बेलपत्र, धतूरा, सफेद फूल अर्पित करें।
- रुद्राष्टाध्यायी, शिव तांडव स्तोत्र, महामृत्युंजय मंत्र या ‘ॐ नमः शिवाय’ का जाप करते हुए अभिषेक करें।
- धूप-दीप से आरती करें और प्रसाद अर्पित करें।
- अंत में परिवार सहित भगवान शिव की आरती करें और मनोकामना प्रकट करें।
रुद्राभिषेक में कौनसे जल का विशेष महत्व है
सावन में विभिन्न प्रकार के जल या द्रव से रुद्राभिषेक करने का अलग-अलग महत्व बताया गया है —
गंगाजल – समस्त पापों का नाश करता है।
दूध – शांति एवं सुख-समृद्धि प्रदान करता है।
घी – स्वास्थ्य और दीर्घायु के लिए श्रेष्ठ है।
दही – संतान सुख के लिए लाभकारी है।
शहद – मीठे स्वभाव और प्रेम में वृद्धि करता है।
पंचामृत – सर्व-सुख और ऐश्वर्य प्रदान करता है।
शुद्ध जल – मन की शुद्धि करता है।
चंदन – मानसिक शांति और सौंदर्य बढ़ाता है।
गन्ने का रस – आर्थिक समृद्धि के लिए उत्तम है।
रुद्राभिषेक के लाभ
- स्वास्थ्य लाभ
रुद्राभिषेक करने से मानसिक शांति प्राप्त होती है। स्वास्थ्य में सुधार होता है और रोगों से रक्षा मिलती है।
- आर्थिक स्थिति में सुधार
जो व्यक्ति आर्थिक परेशानियों से जूझ रहा हो, वह सावन में रुद्राभिषेक कर आर्थिक समृद्धि प्राप्त कर सकता है। व्यापार में वृद्धि होती है।
- वैवाहिक जीवन में मधुरता
विवाह में विलंब या वैवाहिक जीवन में तनाव हो तो सावन में रुद्राभिषेक से जीवन में प्रेम और सौहार्द बढ़ता है।
- संतान सुख
संतानहीन दंपती यदि श्रद्धापूर्वक सावन में रुद्राभिषेक करते हैं तो उन्हें संतान सुख की प्राप्ति होती है।
- आध्यात्मिक जागृति
मन को एकाग्र करने और ध्यान में सफलता के लिए रुद्राभिषेक अत्यंत प्रभावशाली होता है। इससे व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति होती है।

रुद्राभिषेक से जुड़े पौराणिक प्रसंग
समुद्र मंथन और सावन का महत्त्व
जब समुद्र मंथन हुआ तब सबसे पहले हलाहल विष उत्पन्न हुआ जिसे भगवान शिव ने ग्रहण किया। इस विष की ज्वाला से शिव जी का कंठ नीला हो गया और वे नीलकंठ कहलाए। देवताओं ने सावन मास में शिवजी का जलाभिषेक कर उनकी पीड़ा को शांत किया। तभी से सावन में शिवलिंग पर जल चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई।
रामायण में रुद्राभिषेक
भगवान श्रीराम ने लंका पर विजय से पूर्व ऋषियों की सलाह पर रामेश्वरम् में शिवलिंग की स्थापना कर रुद्राभिषेक किया। इससे उन्हें विजय प्राप्त हुई।
महाभारत में रुद्राभिषेक
महाभारत में भी अर्जुन ने भगवान शिव की आराधना कर पाशुपतास्त्र प्राप्त किया। उन्होंने गंगा किनारे तपस्या कर रुद्राभिषेक किया और आशीर्वाद पाया।
सावन के प्रत्येक सोमवार का विशेष महत्व
सावन के चार या पांच सोमवार विशेष रूप से भगवान शिव के लिए अर्पित माने जाते हैं। इन सोमवार को उपवास कर रुद्राभिषेक करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
सावन सोमवार व्रत नियमः
सूर्योदय से पूर्व स्नान करें।
श्वेत या हल्के रंग के वस्त्र पहनें।
निर्जल व्रत या फलाहार व्रत करें।
शिवलिंग का रुद्राभिषेक करें।
‘ॐ नमः शिवाय’ या महामृत्युंजय मंत्र का 108 या 1008 बार जप करें।
गरीबों को भोजन कराएं।
सायं काल आरती कर व्रत समाप्त करें।

कौन कर सकता है रुद्राभिषेक?
सावन में रुद्राभिषेक कोई भी व्यक्ति कर सकता है। ब्रह्मचारी, गृहस्थ, विद्यार्थी, व्यापारी, स्त्री-पुरुष सभी शिव पूजा कर सकते हैं। स्त्रियाँ विशेषकर सावन सोमवार को व्रत रखकर रुद्राभिषेक करती हैं। बच्चों के लिए भी शिव पूजा करने से मन एकाग्र होता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से रुद्राभिषेक
आज के वैज्ञानिक युग में भी रुद्राभिषेक के लाभ को देखा गया है।
जल, गंगाजल से शिवलिंग का अभिषेक करने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
मंत्रोच्चारण से ध्वनि कंपन शरीर और वातावरण को शुद्ध करता है।
पंचामृत से अभिषेक करने पर वातावरण में मीठी सुगंध और सकारात्मक स्पंदन उत्पन्न होते हैं।
इससे मन शांत होता है और तनाव कम होता है।
निष्कर्ष
सावन का पावन मास भगवान शिव को समर्पित होता है और रुद्राभिषेक के माध्यम से हम अपने तन, मन और आत्मा को शुद्ध करते हैं। इससे न केवल सांसारिक सुख-सुविधाएँ मिलती हैं बल्कि आध्यात्मिक लाभ भी होता है। रुद्राभिषेक हमारी संस्कृति का एक महान आध्यात्मिक अनुष्ठान है जिसे हर भक्त को श्रद्धा और भक्ति से सावन मास में अवश्य करना चाहिए।

सुंदर मंत्र जो रुद्राभिषेक में बोले जाते हैं:
“ॐ नमः शिवाय”
“ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥”